धरती और अंबर
धरती तो धरती है पर अम्बर क्यूँ ऐसा सोच रहा है
धरती से मिलने को क्यूँ अपने बालों को नोच रहा है
कभी यहाँ तो कभी वहाँ धरती से मैं मिल ही जाऊँगा
थोड़ा उठकर धरती आये थोड़ा झुककर मैं मिल जाऊँगा
इसी आस में हरदम अम्बर नीचे आने को आतुर रहता
ओ धरती में दास तुम्हारा बार बार उससे ये कहता
तुम कितनी ही दूर भटक लो पर मेरे साये में रहोगी
बारिश की बूंदों से तुमको प्यार करूंगा तब तो कहोगी
मैं तुमसे मिलने की खातिर ऊपर उठने को ज़ोर लगाती
पर मेरी किस्मत है फूटी तुम तक कभी भी पहुंच न पाती
दूर हो तो क्या पर मेरे ही साथ साथ रहते हो हरदम
जब चाहूँ देखूं मैं तुमको कभी तो हो जाएगा संगम
धरती तो धरती है पर अम्बर क्यूँ ऐसा सोच रहा है
धरती से मिलने को क्यूँ अपने बालों को नोच रहा है
कभी यहाँ तो कभी वहाँ धरती से मैं मिल ही जाऊँगा
थोड़ा उठकर धरती आये थोड़ा झुककर मैं मिल जाऊँगा
इसी आस में हरदम अम्बर नीचे आने को आतुर रहता
ओ धरती में दास तुम्हारा बार बार उससे ये कहता
तुम कितनी ही दूर भटक लो पर मेरे साये में रहोगी
बारिश की बूंदों से तुमको प्यार करूंगा तब तो कहोगी
मैं तुमसे मिलने की खातिर ऊपर उठने को ज़ोर लगाती
पर मेरी किस्मत है फूटी तुम तक कभी भी पहुंच न पाती
दूर हो तो क्या पर मेरे ही साथ साथ रहते हो हरदम
जब चाहूँ देखूं मैं तुमको कभी तो हो जाएगा संगम
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