आंसू जो झरते हैं आखों से ,
निकालते हैं गुबार , मन का
शायद आंसू होते हैं ,
दिल की ज़ुबान।
ग़म या खुशी , कैसे भी हों आसूं
बिन बुलाये आते हैं आखों में ,
क्या आसुओं की जुबां होती है ,
हाँ , वो कहते हैं अपनी बात ,
और सुनते हैं खुद ही ,
कोई सहारा नहीं है उनका ,
कोई नहीं संवारता उनकी ज़िंदगी ,
खुद ही पैदा होते हैं ,
और सूख जाते हैं खुद ही ,
जैसे मौत तो नाम से ही बदनाम है ,
पर तकलीफ तो हमेशा ज़िंदगी ही देती है
वैसे ही आंसू तो प्रतीक हैं ग़म का ,
पर हंसी क्या हर बार खुशी देती है।
अपवाद यही कि हंसी कभी ग़म का साथ देती है
और आंसू खुशी में भी शामिल होते हैं
निकालते हैं गुबार , मन का
शायद आंसू होते हैं ,
दिल की ज़ुबान।
ग़म या खुशी , कैसे भी हों आसूं
बिन बुलाये आते हैं आखों में ,
क्या आसुओं की जुबां होती है ,
हाँ , वो कहते हैं अपनी बात ,
और सुनते हैं खुद ही ,
कोई सहारा नहीं है उनका ,
कोई नहीं संवारता उनकी ज़िंदगी ,
खुद ही पैदा होते हैं ,
और सूख जाते हैं खुद ही ,
जैसे मौत तो नाम से ही बदनाम है ,
पर तकलीफ तो हमेशा ज़िंदगी ही देती है
वैसे ही आंसू तो प्रतीक हैं ग़म का ,
पर हंसी क्या हर बार खुशी देती है।
अपवाद यही कि हंसी कभी ग़म का साथ देती है
और आंसू खुशी में भी शामिल होते हैं
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